टीकाकरण ने मानव जाति को सौ से अधिक वर्षों तक संक्रामक बीमारी के भयानक खतरे से निपटने में मदद की है। वे सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रमुख उपकरण बन गए हैं, और वैज्ञानिकों से आशा की जाती है कि वे Zika, SARS, Ebola और कोरोनावायरस जैसी नई बीमारियों के खतरे से निपटने के लिए जल्दी से जल्दी वैक्सीन विकसित करे। लेकिन दुनिया भर में उन माता-पिता की संख्या क्यूँ बढ़ रही है जो उनके बच्चों के टीकाकरण पर सवाल उठाने लगे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के वैक्सीन उत्पादकों को क्यों बेच दिया गया है? और क्या हम उन मल्टीनेशनल कोरपोरेशन पर भरोसा कर सकते हैं, जो टीके के विकास और उत्पादन में तेजी से हावी हैं?

अपनी विवादास्पद पुस्तक में प्रसिद्ध लेखक Stuart Blume ने खुलासा किया कि दोनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और राष्ट्रीय स्तर के कई सबसे प्रभावशाली सलाहकारों को वैक्सीन उद्योग के द्वारा भुगतान किया जाता है। एक बहुत ही गंभीर सवाल उठाते हुए Stuart Blume लिखते हैं कि WHO किसके लिए काम करता है? टीके उद्योग के हितों के लिए या लोगों के लिए। यही कारण है कि 10 साल पहले WHO ने एक महामारी की झूठी अफवाह फैलाई।

कैसे 10 साल पहले WHO ने महामारी की झूठी अफवाह फैलाई
कैसे 10 साल पहले WHO ने महामारी की झूठी अफवाह फैलाई

हाल के वर्षों में, अधिक से अधिक चेतावनी दी गई थी कि वह महामारी उतनी ही घातक हो सकती थी जितनी 1918 की महामारी थी। 2009 HIN1 ने ऐसा तनाव पैदा किया जो वास्तव में वायरोलॉजिस्ट (virologist) की चिंता बढ़ाने वाला था। हालाँकि यह एक HINI वायरस था, यह 1976 के महामारी में शामिल HIN1 वायरस के समान नहीं था। विश्लेषण से पता चला कि यह पक्षी, सूअर और मानव फ्लू के वायरस के एक मौजूदा मिश्रण (Reassortment) द्वारा गठित एक नया H1N1 वायरस था। जिसे आगे सुअर फ्लू के वायरस के साथ जोड़ दिया गया, जिससे इस ‘swine flu’ शब्द का जन्म हुआ।

ऐसा प्रतीत होता है कि वायरस की उत्पत्ति मेक्सिको में वेराक्रूज़ से हुई। यही वजह थी कि इसे Mexican Flu भी कहा गया। मैक्सिकन सरकार ने वायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में शहर की अधिकांश सार्वजनिक सुविधाओं को बंद कर दिया था, लेकिन फिर भी यह दुनिया भर में फैल गया। इन्फ्लूएंजा (influenza) से बिलकुल विपरीत यह वायरस ज्यादातर बुजुर्गों के बजाय छोटे बच्चो और वयस्कों को संक्रमित कर रहा था। वायरस के इस लक्षण नें दुनिया भर के वज्ञानिकों और एपीडेमियोलोजिस्टों (epidemiologists) को हिला कर रख दिया था।

जून 2009 में WHO ने इस प्रकोप को महामारी घोषित किया। यह निर्णय WHO की स्थायी वैक्सीन सलाहकार समिति (जिसे रणनीतिक सलाहकार समूह के विशेषज्ञों या SAGE के रूप में जाना जाता है) की सलाह पर आधारित नहीं था। बल्कि एक आपातकालीन समिति की सलाह पर आधारित था, जिनके सदस्यों के नाम उस समय सार्वजनिक नहीं किए गए थे। इस महामारी की घोषणा ने वैक्सीन के लिए सशर्त आदेशों को स्वचालित रूप से ट्रिगर किया जो अमीर देशों ने पहले से ही वैक्सीन निर्माताओं के साथ सांठ-गाँठ बिठा रखीथी। कई यूरोपीय देशों की सरकारों ने प्रत्येक निवासी के लिए दो खुराक का आदेश दिया, जिसकी कीमत सैकड़ों-लाखों यूरो थी। इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य, कि अभी तक वैक्सीन आदेशों का थोक वितरण भी नहीं किया गया था, और रोगियों की संख्या पहले से ही कम होने लगी थी।

2010 की गर्मियों में डब्ल्यूएचओ (WHO) ने घोषणा की कि महामारी समाप्त हो गई है। विशेषज्ञों द्वारा की गई भविष्यवाणी की तुलना से वायरस बहुत कम घातक था। अनुमान है कि इस HINI महामारी में व्यापक रूप से दस हजार से लेकर कुछ सैकड़ों हजारों तक लोगों की मृत्यु हुई, हालाँकि यह आकड़ा हमेसा ही विवादित रहा। जो स्पष्ट प्रतीत होता है वह यह है कि अधिकांश मौतें यूरोप में नहीं बल्कि अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में हुईं। इस घटना में, अधिकांश वैक्सीन का उपयोग नहीं किया गया था। क्योंकि यह दुनिया के अधिक संपन्न देशों द्वारा खरीदी गई थी और लोगों तक तब पहुंची जब महामारी अपने प्रचंड प्रकोप से कम हो चुकी थी। कुछ ऐसे देश जो खुद को इस महामारी के प्रकोप की कतार से कुछ हद तक बचा ले गए थे तो अब उन्हें अधिशेष टीका खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

लाखों डोज़, जिनका भविष्य के इन्फ्लूएंजा (influenza) महामारी से लड़ने में कोई रोल नहीं होगा (और कुछ आलोचकों ने दावा किया कि उनकी सुरक्षा के लिए ठीक से परीक्षण नहीं किया गया था) उन्हें नष्ट करना पड़ा। जमकर बहस होने के बाद आलोचकों ने दावा किया कि डब्ल्यूएचओ (WHO) ने खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर बताया,  और तत्काल सूचना के बजाय भय और भ्रम फैलाया। डब्ल्यूएचओ (WHO) और राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने की जांच के लिए समितियों की जांच नियुक्त की गई।

किस आधार पर, और किसकी सलाह पर महामारी घोषित की गई थी? किस आधार पर और किसकी सलाह पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने बहुराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के साथ गुप्त अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे? अंततः जब यह ज्ञात हो गया कि डब्ल्यूएचओ (WHO) और राष्ट्रीय स्तर दोनों के कई सबसे प्रभावशाली सलाहकारों को वैक्सीन उद्योग नें मोटी रकम दी थी, तो कई समीक्षक चकित रह गए। और वे किसके हित में सेवा कर रहे थे? क्या यह हितों के टकराव का स्पष्ट मामला नहीं है।

टीकाकरण से रोगक्षमीकरण: टीके कैसे विवादास्पद बन गए – स्टुअर्ट ब्लूम की किताब से अंश

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