WHO ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर भारत में COVID-19 निगरानी परियोजना की शुरुआत की है। पूर्ण पैमाने पर निगरानी के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग भारत में भविष्य की रणनीति बनाने के लिए किया जाएगा। संयोगवश, WHO की राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी परियोजना उसी दिन शुरू की गई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने WHO की फंडिंग बंद करने की घोषणा की थी। ट्रम्प नें फंडिंग बंद करने की बात इस तर्ज पर कही क्यूंकि WHO द्वारा की जा रही गलतियाँ बार-बार दोहराई जा रही हैं, और इन गलतियों की एक लम्बी फेहरिस्त है।
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भारतीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और WHO ने 15 अप्रैल 2020 को COVID-19 प्रतिक्रिया के लिए, WHO के राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क और अन्य क्षेत्र के कर्मचारियों के एक व्यवस्थित साझेदारी की शुरुआत की है। और यह जानकारी उन्होंने WHO के एक प्रेस विज्ञप्ति से दी है। भारत की WHO राष्ट्रीय निगरानी परियोजना का नाम बदलकर राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी परियोजना कर दिया गया है।
Watch Deferred Live !! Dr Harsh Vardhan, Union Health Minister, interacts with @WHO field officers for #COVID19 containment strategy. Meeting via Video Conference from Nirman Bhawan, New Delhi https://t.co/zId9YTHWOB
— DrHarshVardhanOffice (@DrHVoffice) April 15, 2020
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि भारत सरकार और WHO ने मिलकर पूरी दुनिया को हमारी क्षमता, और कौशल को दिखाया है। हमारे सभी संयुक्त काम सावधानीपूर्वक, पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ किए गए हैं। हम पोलियो से छुटकारा पाने में भी सफल रहे थे। इस वैश्विक संकट के समय मैं एक बार फिर आप सभी का आह्वाहन करना चाहूँगा और हम सभी को अपनी क्षमता और अपने कौशल के साथ एक साथ मिलकर कार्य करना होगा। आप सभी क्षेत्र – IDSP, राज्य की त्वरित प्रतिक्रिया टीम और WHO हमारे कोरोना निगरानी योद्धा हैं। आपके संयुक्त प्रयासों से हम कोरोनावायरस को पराजित कर जीवन बचा सकते हैं।
My thanks to Minister @drharshvardhan for his leadership and collaboration with @WHO. Through these joint efforts we can defeat the #coronavirus and save lives. Together! #COVID19 https://t.co/G7ttUz5QkH
— Tedros Adhanom Ghebreyesus (@DrTedros) April 15, 2020
WHO दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने 1994 में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के तौरपर, कई प्रमुख पोलियो उन्मूलन पहलों को शुरू करने के लिए डॉ. हर्षवर्धन की सराहना की है। उन्होंने कहा कि डॉ. हर्षवर्धन की कई पहल को देश भर में बढ़ाया गया और अन्य देशों द्वारा भी अपनाया गया है। डॉ. हर्षवर्धन को 1998 में WHO द्वारा Director-General’s Polio Eradication Champion Award Commendation Medal से सम्मानित किया गया था।
हालाँकि, WHO का पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम इतनी सफलता से नहीं चला था जितना कि दिखाया जा रहा था। और यह बात ग्रेटगेमइंडिया ने अपने पहले के एक लेख बिल गेट्स के भारतीय एजेंडा का पर्दाफाश में विस्तार पूर्वक बताया है।
पोलियो को मिटाने के लिए $450 मिलियन की धनराशि के साथ, बिल गेट्स ने India’s National Technical Advisory Group on Immunization (NTAGI) पर पूरा नियंत्रण कर लिया था। जिसने पांच साल की उम्र से पहले बच्चों को overlapping immunization programs के माध्यम से पोलियो वैक्सीन के 50 खुराक तक अनिवार्य कर दिया था। भारतीय डॉक्टरों ने गेट्स अभियान को विनाशकारी non-polio acute flaccid paralysis (NPAFP) महामारी के लिए जिम्मेदार ठहराया था। जिसकी वजह से वर्ष 2000 और 2017 के बीच अनचाही दरों से परे 490,000 बच्चे अपंग हो गए थे।
2017 में, भारत सरकार ने गेट्स के वैक्सीन रेजिमेंट को अपनाने से इंकार कर दिया था और गेट्स और उनकी वैक्सीन नीतियों को भारत में लागू ना करने की घोषणा कर दी थी। जिसके बाद NPAFP की दरों में तेजी से गिरावट देखी गयी थी। 2017 में, WHO ने ना चाहते हुए भी यह स्वीकार किया था कि पोलियो में वैश्विक विस्फोट की वजह मुख्य रूप से वैक्सीन स्ट्रेन है। कांगो, अफगानिस्तान और फिलीपींस में सबसे भयावह महामारी के सारे मामले टीके से जुड़े हैं। वास्तव में, 2018 तक वैश्विक पोलियो के 70% मामले वैक्सीन स्ट्रेन के कारण थे।
इसके अलावा, WHO दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा, कि “COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में, हम एक ऐसे चरण में प्रवेश कर चुके हैं, जहाँ COVID-19 निगरानी भविष्य की रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।”
NPSP टीम की काम डेटा प्रबंधन, निगरानी और पर्यवेक्षण, और स्थानीय स्थितियों को मजबूती से संभालना है। चुनौतियों का जवाब देने और COVID-19 निगरानी को मजबूत करने के लिए NCDC, IDSP और ICMR के पूरक प्रयासों का उपयोग किया जाएगा।
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब स्वास्थ्य संकट के दौरान WHO की आलोचना की जा रही है। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां WHO को बिना किसी तैयारी के देखा गया है। और यह पहली बार नहीं है जब, WHO के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट तैयार करते समय बचकानी गलतियाँ की हैं जो बिलकुल भी नजरंदाज करने योग्य नहीं हैं।
वास्तव में, WHO द्वारा जारी की गयी एक स्थिति रिपोर्ट में भारत को सामुदायिक प्रसारण के एक चरण में गलत तरीके से दिखाया गया। और जब WHO से इसका स्पष्ट जवाब माँगा गया, तो WHO नें मजबूरन अपनी गलती स्वीकारते हुए यह जवाब दिया कि भारत के मामले में यह कई समूहों में बंटे हुए हैं, न कि यह एक सामुदायिक प्रसारण हैं।
WHO द्वारा की जा रही लगातार ऐसी गलतियाँ लोगों के जीवन से निपटने में इसकी दक्षता और क्षमता पर गंभीर सवाल उठाती है। नियमित आधार पर की जा रहीं गलतियों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य-संकट के लिए WHO के गैम्बलिंग-एप्रोच को दर्शाती है। यदि अतीत के अनुभवों पर नजर डालें तो WHO को वैक्सीन लॉबी के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से कई विशेषज्ञों ने WHO को बंद करने की कवायद की है।
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